रात जो कभी खत्म नहीं होती...
कमरा अंधेरे और सिगरेट के धुएँ से भरा हुआ था। सान्या बिस्तर पर बैठी थी, उसके गले पर आयुष के पिछले निशान अभी भी हल्के लाल पड़े थे। वो जानती थी कि जब तक वो यहाँ है, तब तक उसे हर रात इसी जुनून का शिकार बनना पड़ेगा—और उसे यह पसंद भी था।
दरवाज़ा खुला।
आयुष अंदर आया, काले शर्ट की बटन आधी खुली हुई, आँखों में वही वहशी चमक। उसने बिना कुछ बोले सिगरेट जलाया, एक कश लिया, और धुआँ सीधा सान्या के चेहरे पर छोड़ दिया।
आयुष: "आज बड़ी शरीफ बनी बैठी है? या फिर सच में डर गई?"
सान्या (हल्की मुस्कान के साथ): "डर? तुझसे? ख़्वाबों में भी नहीं।"
आयुष ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया, और धीरे-धीरे धुआँ उसके चेहरे पर छोड़ दिया।
आयुष (उसके करीब आकर, गहरी आवाज़ में): "तो फिर भाग क्यों नहीं रही? या चाहती है कि तुझे यहीं चोद दूँ?"
सान्या ने आँखों में वही नशा और मुस्कान लिए जवाब दिया—"शायद... देखना चाहती हूँ कि तुझमें दम कितना है?"
बस, इतना सुनना था कि आयुष का धैर्य खत्म हो गया।
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काबू और बेबसी
एक झटके में उसने सान्या को पकड़कर दीवार से चिपका दिया। उसकी साँसें गर्म हो रही थीं, धड़कनें तेज़ थीं।
सान्या: "हर बार इतनी जल्दबाज़ी क्यों?"
आयुष (गर्दन पर होंठ फेरते हुए, कान में फुसफुसाकर): "क्योंकि हर बार तुझे ज्यादा सज़ा देने का मन करता है।"
उसने उसकी कलाई पकड़कर ऊपर कर दी, और दूसरे हाथ से उसकी कमर को जकड़ लिया।
सान्या: "देखते हैं तेरा गुस्सा कब तक चलता है..."
आयुष: "रात खत्म होने तक तो जरूर चलेगा!"
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सरहदें टूटती हैं...
सान्या ने हल्के से अपनी आँखें बंद कीं, होंठ काटे, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया।
आयुष (और करीब आकर, गहरी आवाज़ में): "बोल... या फिर मैं तुझे वैसे ही सज़ा दूँ, जैसे तुझे पसंद है?"
सान्या ने आँखें खोलीं और उसे एक नशे से भरी मुस्कान दी।
"तेरी औक़ात है?"
बस, इतना सुनना था कि आयुष का ग़ुस्सा फिर से भड़क गया। उसने उसे पकड़कर बिस्तर पर गिरा दिया, और खुद उसके ऊपर झुक गया।
कमरा धड़कती साँसों और बेकाबू धड़कनों से भर गया।
आयुष ने उसकी कलाई पकड़कर ऊपर कर दी।
सान्या ने उसे गुस्से से देखा, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब-सा नशा भी था।
"तू समझता है कि तू मुझे कंट्रोल कर सकता है?"
आयुष मुस्कुराया। "मैं तुझे हर बार कंट्रोल करता हूँ, और तुझे हमेशा यही चाहिए होता है।"
फिर, जैसे ही उसने उसके होंठों को अपने करीब खींचा, सान्या ने अचानक खुद को छुड़ाया और उसे ज़ोर से पलट दिया।
अब आयुष नीचे था और सान्या उसके ऊपर झुकी हुई थी।
"आज तेरा हुक्म नहीं चलेगा।"
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अधूरी तृप्ति...
सवेरा होने तक, वे दोनों एक-दूसरे को इतना तोड़ चुके थे कि अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहेगा।
सान्या (हल्की आवाज़ में, गहरी साँस लेते हुए): "अब आगे क्या?"
आयुष ने उसकी आँखों में गहराई से देखा, और धीरे से कहा—
"शायद... अगली रात भी यही खेल खेलना है।"
कमरे में अब भी सिगरेट का धुआँ तैर रहा था। पर्दे से छनकर आती हल्की रोशनी उनके बिखरे हुए कपड़ों पर पड़ रही थी।
आयुष बिस्तर पर लेटा था, उसकी साँसें अब भी भारी थीं। सान्या उसके सीने पर हाथ रखे चुपचाप पड़ी थी, जैसे कुछ सोच रही हो।
आयुष (हल्की मुस्कान के साथ): "तो… आज रात तुझे जीत का अहसास हो रहा है?"
सान्या (गहरी नज़रें उसके चेहरे पर टिकाए): "ये कोई जंग नहीं थी, आयुष। और जीत-हार के खेल में मैं नहीं पड़ती।"
आयुष हल्का सा हंसा। उसने सिगरेट का आखिरी कश लिया और ऐशट्रे में बुझा दिया। फिर, वह अचानक उठकर उसके चेहरे के करीब आ गया।
आयुष (धीमी आवाज़ में): "तो फिर ये क्या था? हर बार की तरह वही जुनून? या फिर कुछ और?"
सान्या चुप रही। उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था कि अब उसका रिश्ता आयुष से क्या बन चुका है—सिर्फ एक नशा? या कुछ और गहरा?
वह उठी, शर्ट पहनने लगी।
आयुष (गहरी आवाज़ में): "कहाँ जा रही है?"
सान्या (पीछे देखे बिना): "तुझे क्या फर्क पड़ता है?"
आयुष को ये जवाब अच्छा नहीं लगा। उसने झटके से उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर खींचा।
आयुष: "मुझे फर्क पड़ता है, सान्या। और तुझे भी पड़ता है, मान क्यों नहीं लेती?"
सान्या (हल्की हंसी के साथ): "शायद… लेकिन मैं तुझे ये एहसास इतनी आसानी से नहीं दिलाने वाली।"
उसने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया और दरवाज़े की ओर बढ़ी। लेकिन जैसे ही उसने हैंडल घुमाया, आयुष ने पीछे से आकर उसे पकड़ लिया।
आयुष (फुसफुसाते हुए): "तू जानती है, सान्या… ये रात कभी खत्म नहीं होगी।"
सान्या ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—"देखते हैं…" और दरवाज़ा खोलकर बाहर चली गई।
(जारी रहेगा...)